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मुंशी प्रेमचंद का आलेख ‘साम्प्रदायिकता व संस्कृति’ चित्र में देखें. यह आलेख मुंशी जी ने 1934 में लिखा था. मुंशी जी ने यहाँ संस्कृति, साम्प्रदायिकता के बारे में लिखते हुए हिन्दू व मुस्लिम दोनों को एक ही पलड़े पर रखा था. दोनों के रहन-सहन, व्यवहार, खान-पान एक से ही थे. वे कहते हैं कि लोग किस संस्कृति के रक्षण की बात करते हैं, संस्कृति रक्षण की बात लोगों को साम्प्रदायिकता की ओर ले जाने का पाखण्ड है. वे कहते हैं कि संसार में हिन्दू ही एक जाति है जो गाय को अखाद्य व अपवित्र समझती है, तो क्या इसके लिए हिन्दुओं को समस्त विश्व से धर्म संग्राम छेड़ देना चाहिए.
ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में मुंशी जी को विश्व की स्थितियों एवं इस्लाम धर्म व उसके अनुयाइयों की मूल व्यावहारिकता व धार्मिक कट्टरता के बारे में अनुमान नहीं था. जो गलती गांधीजी ने की, वही गांधीवादी विचारों को मानने वालों ने भी की. अन्यथा वे ऐसा न कहते. यदि आज वे होते तो अपने कथन पर दुःख: प्रकट कर रहे होते. उनकी कहानियों के रूप भी कुछ भिन्न होते. आज यूरोप व एशिया के कुछ देशों में गाय वध दंडनीय अपराध है.
उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दोनों के समान संस्कृति, पहनावा, खान-पान की जो बात लिखी थी, वह ब्रिटिश राज में दोनों के दास स्थिति में होने के कारण थी एवं अधिकांश वे मुस्लिम हिन्दुओं से ही मुस्लिम बनाए हुए थे. अतः पहनावा आदि एक ही थे.
स्वतन्त्रता मिलते ही स्थिति एक दम बदल गयी. पाकिस्तान के रूप में मुस्लिमों का सहज आक्रामक रूप सामने आ गया, जो देश के विभाजन एवं उस समय की वीभत्स घटनाओं से ज्ञात होता है और आज विश्व भर में फैले हुए आतंकवाद से.
तमाम बातें असत्य भी लिखी गयी हैं. यथा हिन्दुओं द्वारा गाय को अपवित्र समझना. बिंदु- 4. मद्रासी हिन्दू का संस्कृत न समझना, बिंदु- 1. संस्कृति ही मानव का व्यवहार तय करती है और वह सुसंस्कृति या अपसंस्कृति होती है. सुसंस्कृति का रक्षण होना ही चाहिए.
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