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… तो वह सभ्यता निश्चित ही पतन को दस्तक देगी

drshyam jagaran blog
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किसी शायर ने अर्ज़ किया था…
मगस को यूं बागों में जाने न दीजिये
महज़ परवाने बर्बाद हो जाएंगे।

ganga

अर्थात मगस (मक्खी) का परवाने से, उसके बर्बाद होने से क्या संबंध। अर्थ है कि मक्खी बाग़ में जाएगी, फूलों का रस चूसकर मकरंद बनाएगी, तो रखने के लिए मोम का छत्ता तैयार करेगी। मोम से मोमबत्ती (शमा) बनेगी, जिसकी लौ पर मंडराकर परवाने अपनी जान देंगे। इस शेर की साहित्य जगत में काफी आलोचना भी हुई। परन्तु आज न जाने क्‍यूं इस शेर को गुनगुनाने का मन कर रहा है।

सभ्यता के भौतिक विकास के साथ यदि संस्कृति का विकास नहीं है, तो वह सभ्यता निश्चित ही पतन को दस्तक देगी। विकास को पतन से जोड़ना निश्चय ही दूर की कड़ी ही लगती है, लेकिन दूर की सोचें, तो यह सच है। केवल एक बिंदु पर सोचते हैं। आज नदियों के प्रदूषण या सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण का कारण भी विकास ही है। हम बड़े प्रसन्न हैं इन्फोटेक महाविकास की सुविधाओं से। यह ऐसा ही है, जैसे पहले कुआं खोदें, फिर उसे भरने का उपाय करें।

सदियों से हम जंतु व मानव उत्पादित मल-मूत्र और अन्य जैविक कचरा खेतों में डिस्पोज व प्रयोग करते आये हैं। मानव विष्ठा व गोबर आदि सब कुछ वायु व मिट्टी में समायोजित हो जाता था। न डिस्पोज़ल की चिंता न रासायनिक खाद की। सब कुछ सुनियोजित–प्राकृतिक। हमने बड़े-बड़े नगर बनाए। खेतों को छोड़कर घरों में मल-मूत्र विसर्जन स्थान बनाए, फिर उनके लिए सीवर सिस्टम, जो भूमि के अन्दर जाकर भूमिगत जलतंत्र को प्रदूषित करते हैं और सारा का सारा नाले व नालियों द्वारा नदियों में जाता है। गोबर आदि जो खेतों/घरों में ही नियोजित हो जाता था, अब नालों द्वारा नदियों में बहाया जाने लगा।

प्राकृतिक खाद तंत्र समाप्त होने से, खेतों के लिए रासायनिक खाद की आवश्यकता हुई। उसके लिए कारखाने, उनसे पुनः धुआं, कचरा, रसायन जो फिर नदियों में जाने लगा। सेनेटरी/बिल्डिंग सामान के लिए पुनः नए-नए उत्पाद, उनके कारखाने और पुनः प्रदूषण, नदियों में। प्रदूषण से बचने के लिए नए-नए आविष्कार, कारखाने उन्हें चलाने के लिए नयी-नयी ऊर्जाएं, तीव्र गति के आवागमन आदि के प्रसाधन, गतिवर्धन के लिए,  कम्प्यूटरी करण, इन्फोटेक इंडस्ट्री और फिर वही कचरा उत्पादन एवं नदियों में समायोजन-प्रदूषण।

आज विश्व की अधिकांश नदियां प्रदूषित हैं, जिनमे हमारी माता गंगा प्रथम स्थान पर हैं। सभी नदियों के प्रदूषण का मूल कारण, उनमें गिराने वाले नगर के मानवीय-त्याज्य, कूड़ा-कचरा, बड़ी से बड़ी फैक्ट्रियां, खाद के कल-कारखानों के छोड़े त्याज्य हैं। विकास व सभ्यता की इस चक्रीय चूहा दौड़ के कारण उत्पन्न सामाजिकता के ह्रास के साथ ही मानव–संस्कृति का पतन जुड़ा हुआ है। विश्व की महानतम हड़प्पा-सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों में एक यह कारण भी प्रमुख था। हम सबक ले सकते हैं, ब्रिटेन की थेम्स नदी से, जो इन्हीं कारणों से मृत नदी घोषित हो चुकी थी। परन्तु नदी में किसी भी प्रकार के कल कारखानों के त्याज्य व सीवर त्याज्य के कठोर क़ानून बनने पर एवं पालन होने पर, आज वही नदी विश्व की सबसे निर्मल जल की नदी है।

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