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श्याम स्मृति—आयु होने पर धर्म,-कर्म व अध्यात्म…

drshyam jagaran blog
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श्याम स्मृति—आयु होने पर धर्म,-कर्म व अध्यात्म…..
क्या केवल अधिक आयु होजाने पर, वानप्रस्थ अवस्था में, सेवानिवृत्त होने के पश्चात ही धर्म, कर्म व अध्यात्म, दर्शन का ज्ञान प्राप्त करना या उनकी ओर मुख मोड़ना चाहिए, उनकी बातें, चर्चा आदि करना चाहिए | जैसा कि प्रायः ऐसा कहा-सुना व किया जाता है |

वास्तव में सर्वश्रेष्ठ वस्तुस्थिति तो यह है कि सभी को बाल्यावस्था से ही प्रत्येक स्तर पर धर्म, अध्यात्म, दर्शन, संस्कृति आदि का अवस्था के अनुसार यथास्थित, यथायोग्य, समुचित ज्ञान कराया जाना चाहिए | तभी तो व्यक्ति प्रत्येक अवस्था, स्थिति व जीवन भर के व्यवहार एवं विभिन्न कर्मों व कृतित्वों में मानवीय गुणों के ज्ञान का समावेश कर पायेगा| यदि जीवन के प्रत्येक कृतित्व में इस ज्ञान में अन्तर्निहित सदाचरण का पालन किया जायगा तो विश्व में द्वेष द्वंद्व स्वतः ही कम होंगे | यदि सारे जीवन व्यक्ति अज्ञानता के कारण विभिन्न कदाचरण में लिप्त रहे तो आख़िरी समय पर धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि जानने का क्या लाभ ?

तो क्या, वानप्रस्थ अवस्था में धर्म-कर्म, अध्यात्म, दर्शन आदि जानने का कोइ लाभ नहीं है ? अवश्य है…जब जागें तभी सवेरा | जो जीवन के प्रारम्भ व मध्य में ये ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते, वे अज्ञानवश चाहे जैसे रहे हों परन्तु सांसारिक कृतित्वों व दायित्वों से निवृत्त होने पर कर्मों से समय मिलने पर अवश्य ही इस ज्ञान को प्राप्त करें व लाभ उठायें | पुनः सेवायोजन, अर्थ हेतु काम धंधे में संलग्न होजाना सामाजिक विद्रूपता है, विकृति है, इससे बचना चाहिए |

मानव की जीवन-यात्रा व पुनर्जन्म आदि क्रमिक आध्यात्मिक, मानसिक उन्नति के क्रमिक सोपान हैं | आत्मा की मोक्ष तक ऊपर उठने का लक्ष्य है | अतः अंत समय में भी इस ज्ञान की प्राप्ति से आप अपनी वर्त्तमान संतति –पुत्र, नाती-पोतों को कुछ तो प्रेरणा, उदाहरण व सीख प्रदान करने में सक्षम होंगे | यह ज्ञान अंत समय में व्यक्ति के आत्मारूपी सूक्ष्म-जीव के साथ (जेनेटिक कोड में स्थापित होकर) अगले जन्म तक जायेंगे और अगली पीढी में स्थानातरण होकर स्थापित होंगे |

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