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गंगा –प्रदूषण…डा श्याम गुप्त

drshyam jagaran blog
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गंगा –प्रदूषण ( घनाक्षरी छंद )

१.

सदियों से पुष्प बहे, दीप-दान होते रहे ,

दूषित हुई न कभी नदियों की धारा है |

होते रहे हैं नहान, मुनियों के ज्ञान-ध्यान,

मानव का  सदा रही,  नदिया सहारा है |

बहते रहे शव भी, मेले- कुंभ  होते रहे ,

ग्राम नगर बस्ती के  जीवन की  धारा है |

श्रद्धा, भक्ति, आस्था के कृत्यों से प्रदूषित गंगा .

छद्म-ज्ञानी, अज्ञानी, अधर्मियों का नारा है | |

२.

नदीवासी जलचर, मीन  कच्छप मकर ,

नदिया सफाई हित, प्रकृति व्यापार  है |

पुष्प घृत  दीप बाती ,शव अस्थि चिता-भस्म,

जल शुद्धि-कारक,जीव-जन्तु आहार है |

मानव का मल-मूत्र, कारखाना-अपशिष्ट,

बने जल-जीवों के विनाश का आधार है |

यही सब कारण हैं, न कि आस्था के वे दीप,

आस्था बिना हुई प्रदूषित गंगधार है |

3.

फैला अज्ञान तमस, लुप्त है विवेक, ज्ञान ,

श्रृद्धा आस्था से किया मानव ने किनारा है |

अपने ही दुष्कृत्यों का, मानव को नहीं भान

अपने कुकृत्यों से ही मानव स्वयं हारा है |

औद्योगिक गन्दगी, हानिकारक रसायन,

नदियों में बहाए जाते, किसी ने विचारा है |

नगरों के मल-मूत्र, बहाए जाते गंगा में,

इनसे  प्रदूषित हुई, गंगा की धारा है ||

.

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