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आर्य भारत के मूल निवासी थे … डा श्याम गुप्त

drshyam jagaran blog
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आर्य भारत के मूल निवासी थे … डा श्याम गुप्त

अभी हाल में ही समाचारों में कुछ वक्तव्य पढ़कर कि अगडी जातियां आर्य हैं जो भारत में बाहर से आये, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि हम आज़ादी के इतने वर्ष बाद तक एवं इतने विकास के पश्चात भी वहीं के वहीं हैं एवं अभी तक अज्ञान जनित पुरातन योरोपीय ज्ञान एवं भ्रांत अवधारणाओं में जी रहे हैं|  विज्ञान या पाश्चात्य विद्वान् अभी तक यह नहीं जान पाए व बता पाए की वास्तव में आर्य किस प्रदेश के मूल निवासी थे एवं कहाँ से आये थे | क्योंकि वास्तव में भारत से अन्यथा कोई देश हो ही नहीं सकता जहां के वे निवासी थे | विश्व के सबसे प्राचीन व इतिहासक ग्रन्थ वेदों में यह तथ्य बार बार उद्घाटित किया जाता रहा |

इस भ्रामक अवधारणा ने केवल भारतीय संस्कृति समाज की ही नहीं अपितु विश्व एवं मानवता का बहुत अहित किया है | मानव इतिहास व संस्कृति से बहुत नाइंसाफी की है | भारतीय जनमानस में आपस में ही द्वेष, आर्य-अनार्य विचार एवं दक्षिण-उत्तर की भावना उत्पन्न करने वाला यह विचार, तात्कालिक राजनैतिक लाभ हेतु विदेशियों एवं विधर्मियों द्वारा योजनाबद्ध ढंग से प्रचारित किया गया | इन्ही प्रयासों फलस्वरुप  आज भी भारत में समय समय पर विविध क्षेत्रों से उठने वाली असत्य व कुविचारों की लहरें दृष्टिगत होती रहती हैं|

प्रथम जीव की उत्पत्ति धरती के पेंजिया ( गोंडवानालेंड + लारेशिया ) भूखंड के काल में ..गोंडवाना लेंड पर हुई | गोंडवाना लेंड के अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया एवं भारतीय प्रायद्वीप में विखंडन के पश्चात वे जीव अपने-अपने क्षेत्र में बंट गए | जीवन का विकास सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है | यहाँ डायनासोरों के अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं| भारत के सबसे पुरातन आदि-वासी गोंडवाना प्रदेश के गोंड सम्प्रदाय की पुरा कथाओं में भी यही तथ्य वर्णित हैं |

तमाम वैज्ञानिक, संरचनात्मक भौगोलिक ज्ञान, जेनेटिक विज्ञान, सांस्कृतिक, दार्शनिक, धार्मिक, शास्त्रीय एवं विश्व के सर्व-पुरातन ग्रंथों ..वेदों तथा भारतीय एवं दक्षिण आदि-निवासियों के पुरा कथा-कहानियों, श्रुति-परम्परा के अनुसार … गोंडवाना लेंड पर प्रथम आदि-मानव का जन्म हुआ तथा उसके विखंडन पर आदि-मानव ( होमिनिड्स आदि ) व अन्य जीव अमेरिका, अफ्रीका, भारत,

आस्ट्रेलिया भूखंडों में बंट गए जो अपने-अपने भूखंडों में नियंडरथल आदि में विक्सित एवं विभिन्न महासागरीय एवं प्रायद्वीपीय हलचलों तथा विकास के उपयुक्त वातावरण व जलवायु के अभाव में बारम्बार नष्ट व अवतरित होते रहे |

अफ्रीकी भूखंड के लारेशिया भूखंड से जुड़ने एवं भारतीय भूखंड के यूरेशियन प्लेट की टक्कर के उपरांत पर टेथिस सागर की विलुप्ति एवं भारतीय प्रायद्वीप के टेथिस सागरीय भूमि से जुडने पर सम्पूर्ण भारत के निर्माण के उपरांत उत्तरी हिमक्षेत्र तिब्बतीय पठार, सुमेरु क्षेत्र एवं उठते हुए हिमालय आदि द्वारा प्राकृतिक रूप से संपन्न भारतीय भूभाग जीवन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त हुआ जहां हिमालय की रक्षापंक्ति से सुरक्षित एवं सरस्वती आदि …महान बड़ी नदियों के देश सप्त चरुतीर्थ में उपस्थित आदिमानव का पूर्ण मानव ( होमो सेपियंस ) में विकास हुआ जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, सप्तर्षियों के नेतृत्व में सरस्वती-दृषवती सभ्यता को जन्म दिया |

दक्षिण प्रायद्वीप में विक्सित नियंडरथल से होमो सेपियंस में विकासमान अवस्था में पेड़ों व गुफाओं से आखेटक रूप छोड़कर खेतिहर रूप में नदियों के किनारे बसता हुआ ,मध्य भारत होता हुआ सभ्यताएं स्थापित करता हुआ मानव..उत्तर की ओर गमन करता हुआ मध्य भारत होता हुआ अपनी आदि भाषा, सभ्यता एवं देवता संभु सेक, ( आदिदेव महादेव जिन्होंने बाद में  समुद्र मंथन से निकला कालकूट विष पान एवं स्वर्ग से गंगावतरणआदि के उपरांत ब्रह्मा, विष्णु से मैत्री के साथ ही देवलोक, जम्बूद्वीप एवं विश्व के अन्य समस्त खण्डों एवं द्वीपों तथा देव-असुर आदि सभी को एक सूत्र में बांधने हेतु दक्षिण भारत की बजाय कैलाश को अपना आवास बनाया एवं दक्ष की पुत्री सती से विवाह किया और  कालांतर में  देवाधिदेव कहलाये |),  के नेतृत्व में उत्तर के सप्त-चरु तीर्थ क्षेत्र में पहुंचा | दोनों भरतखंडीय सभ्यताओं ने मिलकर उन्नत सभ्यताओं को जन्म दिया | सरस्वती सभ्यता, सिन्धु घाटी व हरप्पा सभ्यता के स्थापक भी यही मानव थे | हिमालय के नीची श्रेणियों को पार करके ये मानव तिब्बत क्षेत्र में एवं आगे तक पामीर एवं सुमेरु पर्वत आदि हिमप्रदेश में फैले एवं समस्त भारत में एक उन्नत सभ्यता देव सभ्यता की स्थापना की |

इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश- स्वय्म्भाव मनु, दक्ष, कश्यप-अदिति-दिति द्वारा स्थापित विविध प्रकार के आदि-प्राणी सभ्यता.. ( कश्यप ऋषि की विविध पत्नियों से उत्पन्न विश्व की मानवेतर संतानें नाग, पशु, पक्षी, दानव, गन्धर्व, वनस्पति इत्यादि ) एवं देव.असुर सभ्यता आदि का निर्माण हुआ| मूल भारतीय प्रायद्वीप से स्वर्ग व देवलोक ( पामीर, सुमेरु, जम्बू द्वीप,( समस्त पुरानी दुनिया=यूरेशिया+अफ्रीका +भारत ) कैलाश में दक्षिण –प्रायद्वीप से उत्तरापथ एवं हिमालय की मनुष्य के लिए गम्य ( टेथिस सागर की विलुप्ति व हिमालय के ऊंचा उठने से पूर्व ) ..नीची श्रेणियों से होकर मानव का आना जाना बना रहता था… यही सभ्यता कश्यप ऋषि की संतानों – देव-दानव-असुर आदि विभिन्न जीवों व प्राणियों के रूप में समस्त भारत एवं विश्व में फ़ैली एवं विश्व की सर्वप्रथम स्थापित सभ्यता देव-मानव सभ्यताकहलाई | स्वर्ग, इन्द्रलोक, विष्णुलोक, शिवलोक, ब्रह्मलोक ….सुमेरु-कैलाश ..पामीर –आदि पर्वतीय प्रदेशों में एवं स्वय्न्भाव मनु के पुत्र- पौत्रों आदि द्वारा ,काशी, अयोध्या आदि महान नगर आदि से पृथ्वी को बसाया जा चुका था | विश्व भर में विविध संस्कृतियाँ नाग, दानव, गन्धर्व, असुर आदि बस चुकी थीं | हिमालय के दक्षिण का समस्त प्रदेश द्रविड़ प्रदेशकहलाता था..जो सुदूर उत्तर तक व्यापार हेतु आया-जाया करते थे |

अतः इस प्रकार….समस्त सुमेरु या जम्बू द्वीप देव-सभ्यता का प्रदेश था | यहीं स्वर्ग में गंगा आदि नदियाँ बहती थीं,.यहीं ब्रह्मा-विष्णु व शिव, इंद्र आदि के देवलोक थे…शिव का कैलाश, कश्यप का केश्पियन सागर, स्वर्ग, इन्द्रलोक  आदि ..यहीं थे जो अति उन्नत सभ्यता थी –– जीव सृष्टि के सृजनकर्ता प्रथम मनु स्वयंभाव मनु व कश्यप की सभी संतानें ..भाई-भाई होने पर भी स्वभव व आचरण में भिन्न थे | विविध मानव एवं असुर आदि मानवेतर जातियां साथ साथ ही निवास करती थीं | भारतीय भूखंड में स्थित मानव….. स्वर्ग – शिवलोक कैलाश अदि आया जाया करते थे …देवों से सहस्थिति थी …जबकि अमेरिकी भूखंड (पाताल लोक) व अन्य सुदूर एशिया –अफ्रीका के असुर आदि मानवेतर जातियों को अपने क्रूर कृत्यों के कारण अधर्मी माना जाता था | यह सभ्यता उन्नत होते हुए भी धीरे धीरे भोगी सभ्यता बन चली थी, युद्ध होते रहते थे, स्त्री-पुरुष स्वतंत्र व अनावृत्त थे, स्त्रियाँ स्वच्छंद थीं, बन्धनहीन व स्वेच्छाचारी | शिव जो स्वयं वनांचल सभ्यता के हामी एवं मूलरूप

से दक्षिणी भारतीय प्रायद्वीपीय भाग के देवता थे किन्तु मानवों तथा भारतीय एकीकरण के महान समर्थक के रूप में ब्रह्मा-विष्णु-इंद्र आदि उत्तरी भाग के देवों के साथ कार्य करने हेतु कैलाश पर बस गए एवं दक्ष पुत्री सती ..तत्पश्चात हिमवान की पुत्री पार्वती से विवाह किया | वे सभी जीव व प्राणियों –मानवों आदि के लिए समभाव रहते थे अतः देवाधिदेव कहलाये | देव व दानव गण प्रत्येक कठिनाई में स्वयं समस्या हल करने की अपेक्षा त्रिदेवों की सहायता की अपेक्षा रखने लगे | यहाँ की भाषा देव भाषा – आदि-संस्कृत -देव संस्कृत थी जो.. आदिवासी, वनान्चलीय, स्थानीय कबीलाई व दक्षिण भारतीय जन जातियों की भाषा आदि प्राचीन भारतीय भाषाओं से संस्कारित होकर बनी थी | यही आर्य सभ्यता पूर्व की मूल प्रचलित भाषा देव-संस्कृति ..देव-लोक की भाषा –आदि संस्कृत थी जिसे देव-वाणी कहा जाता है | वेदों की रचना इसी देव भाषा में हुई जिन्हें शिव ने चार विभागों में किया,  जिनके अवशेष लेकर प्रलयोपरांत मानवों की प्रथम-पीढी वैवस्वत मनु के नेतृत्व में तिब्बत से भारतीय क्षेत्रों में उतरी |

महा जलप्रलय एवं मनु की नौका की यह घटना संसार की सभी सभ्यताओं में पाई जाती है | मनु की यह कहानी नूह या नोआ के नाम से यहूदी, ईसाई, इस्लाम सभी में वर्णित है|  इंडोनेशिया, जावा, मलयेशिया, श्रीलंका एवं अन्य देशों की धार्मिक परम्पराओं में यह कथा विविध रूप से वर्णित है|

हिमालय उत्थान के परवर्ती लगभग अंतिम काल के अभिनूतन युग के हिमयुग में महान हिमालय में उत्पन्न भूगर्भीय हलचल से हुई  जल-प्रलय  (–मनु की नौका घटना ) में देव-सभ्यता के विनाश पर वैवस्वत मनु ने इन्हीं वेदों के अवशेषों को लेकर तिब्बतीय क्षेत्र से भारत में प्रवेश किया ( इसीलिए वेदों में बार बार पुरा-उक्थों व वृहद् सामगायन का वर्णन आता है ) | एवं मानव एक बार पुनः भारतीय भूभाग से समस्त विश्व में फैले जिसे योरोपीय विद्वान् भ्रमवश आर्यों का बाहर से आना कहते हैं |

इस महाजलप्रलय से विनष्ट सुमेरु या जम्बू द्वीप की देव-मानव सभ्यता पुनः आदिम दौर में पहुँच गयी जो लोग व जातियां वहीं यूरेशिया के उत्तरी भागों में तथा हिमालय

के उत्तरी प्रदेशों में फंसे रहे वे उत्तर की स्थानीय मौसम, वर्फीली हवाएं ….सांस्कृतिक अज्ञान के कारण अविकसित रहे | जो सभ्यताएं मनु के नेतृत्व में हिमालय के दक्षिणी भाग की भौगोलिक स्वस्थ भूमि ( यथा भारत-भूमि ) पर बसी वह महान विक्सित सभ्यताएं बनीं |

गौरी शंकर शिखर पर उतर कर मनु एवं अन्य बचे हुए लोग तिब्बत में बस गए | मनु एवं नौका में बचे हुए जीवों व वनस्पतियों के बीजों से पुनः सृष्टि हुई| हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें तिब्बत एवं कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं।फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे भारतीय भूमि के मध्य भाग में आते गए। धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी प्रदेशों में फैल गए।
जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की ओर रुख करना शुरू किया। जोहिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखंड भारत की सम्पूर्ण भूमि कोब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश,आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नामदिए। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे जिन्होंने एक उत्कृष्ट सभ्यता को जन्म दिया जो निश्चय ही विनष्ट देव सभ्यता का संस्कारित रूप था |

वैवस्वत मनु ने मनु-स्मृति के रूप में नीति-नियम पालक व्यवस्थासे संपन्न किया तथा परिशोधित भाषा वैदिक-संस्कृत व लौकिक संस्कृत का गठन से एक उच्च आध्यात्मिक चिंतन युक्त श्रेष्ठ सभ्यता को जन्म दिया | वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। आर्य एक गुणवाचक शब्द है जिसका सीधा-सा अर्थ है श्रेष्ठ।  इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि|  इस प्रकार आर्य जाति…विश्व काप्रथम सुसंस्कृत मानव समूह…का भारतीय क्षेत्र में जन्म व विकास होने के उपरांत…मानव सारे भारत एवं विश्व भर में भ्रमण करते रहे सुदूर पूर्व में फैलते रहे |

इन आर्यों के ही कई गुट अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति व सभ्यताओं आदि को जन्म दिया। सिर्फ भौतिक सुख में डूबे, स्वयं में मस्त, अधार्मिक कृत्य व व्यवहार वाले लोगों, जातियों  व सभ्यताओं को अनार्य कहा जाने लगा | मनु की संतानें हीआर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं |

अतः आर्य भारत के ही मूल निवासी थे, न बाहरी, न उत्तर या दक्षिण भारतीय, न अगड़ी जाति न पिछड़ी जाति | जलप्रलय के घटना व मनुस्मृति रचाने वाले वैवस्वत मनु …द्रविड़ देश के राजा सत्यव्रत थे | मनु पृथ्वी के, जम्बू द्वीप, भरतखंड के सर्वमान्य नेत्रित्व की उपाधि थी जो देव सभ्यता में प्रजापति की थी | वेदों को प्रथम बार संपादित कर, एक रूपता देने वाले दक्षिण भारतीय मूल के देवता शिव थे | आखिर हम अगड़े –पिछड़े की बात करते ही क्यों हैं|

मैथिली शरण गुप्त जी के शब्दों में –

“ हमारी जन्म भूमि थी यही

कहीं से हम आये थे नहीं |”

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