भारतीय पर्वों की विशेषता है कि इनके दार्शनिक व तात्विक महत्त्व के साथ-साथ व्यवहारिक महत्त्व के प्रतिपादन हेतु विभिन्न सम्बंधित कथ्य-सूत्रों को जोड़ा गया है जो सिर्फ एक न होकर सदैव विविध सूत्रीय होते हैं | दीपावली मात्र एक पर्व या त्यौहार ही नहीं अपितु धन तेरस, नरक चतुर्दशी, मुख्य दिवाली-लक्ष्मीपूजन, गोवर्धन पूजन एवं यम द्वितीया या भाई दूज आदि का …..पञ्च-दिवसीय पर्व-समूह है जो स्वयं में एक जीवन-दर्शन का प्रतिपादन है |
१.धन तेरस या धन्वन्तरी त्रियोदशी… मानव जीवन के मूल-मन्त्र का प्रथम दर्शन व शर्त ..निरोगी काया अर्थात शारीरिक स्वास्थ्य सर्वप्रथम …का तात्विक प्रतिपादन है | यह प्रथम वैद्य धन्वन्तरि की पूजा का पर्व है | इस दिवस पर नवीन वर्तन या चांदी सोने की वस्तुएं भी खरीदने का रिवाज़ है |
२.नरक चतुर्दशी….नरकासुर का नाश एवं महाकाली पूजा ..अर्थात अज्ञान, अनाचार, अत्याचार, सामाजिक मानवीय व मानसिक हीनता, दुर्वलता आदि प्रत्येक प्रकार की नकारात्मकता, दुष्टता, अहंकार का विनाश…अर्थात मानसिक स्वास्थ्य व सामाजिक स्वास्थ्य की प्रतिष्ठा एवं शक्ति के पूजा |
इस दिवस पर महाकाली की पूजा अर्थात महाकाली द्वारा आदि काल में अज्ञानान्धकार रूपी नरकासुर का विनाश किया गया था| महाकाली वस्तुतः आदि-मूल शक्ति हैं | ( वैदिक नीला सूक्त के अनुसार ) आदि-ब्रह्म रूप महाविष्णु की तीन पत्नियां ..भूदेवी, श्रीदेवी एवं नीला देवी हैं | भूमि एवं समस्त प्रकृति रूप…श्री, ऐश्वर्य, धन-धान्य, समृद्धि ,ऋद्धि-सिद्धि-प्रसिद्धि, यश-कीर्ति रूपी मूलतः दृश्य रूप हैं ..एवं नीला देवी आदि मूल शक्ति जो अदृश्य रूप ही हैं जो कभी योगमाया, कभी भगवती, कभी सहचरी-सखी आदि विविध रूप में प्रकट होती हैं |….महाकाली ही आदि-मूल शक्ति हैं जिनकी राम – रावण वध हेतु पूजा करते हैं….कृष्ण द्वारा सत्यभामा या राधा रूप में सदैव आदरणीय,… स्मरित-पूजित हैं एवं आदि रूप में वे महा-भगवती हैं जिनके वर्णन में स्वयं त्रिदेव भी समर्थ नहीं हैं |
सतयुग में बलि–वामन की घटना भी इसी दिवस पर हुई कही जाती है जिससे वामन रूप विष्णु द्वारा तीन पग में पृथ्वी नाप कर असुर राज महादानी बलि के अहं का विनाश किया गया |
त्रेता युग में उत्पन्न नरकासुर या भौम्यासुर का वध भी इसी दिन श्रीकृष्ण ने पत्नी सत्यभामा की सहायता से किया था एवं बंधक बनाई हुई १६००० स्त्रियों को मुक्त कराया था जो विश्व मानव इतिहास में नारी-उद्धार का सर्वप्रथम उदाहरण था …जिन्हें समाज द्वारा न स्वीकारे जाने की स्थिति में श्रीकृष्ण ने सम्मान सहित अपनी ही रानियों के समान स्थान दिया |
3.लक्ष्मी पूजन ..दिवाली …दीपोत्सव ..दीपावली जो मुख्य पर्व का दिवस है | दोनों प्रकार की स्वस्थता प्राप्त होने पर ही ज्ञान के प्रकाश द्वारा धन-धान्य, यश-कीर्ति, सिद्धि-श्री प्राप्ति की आशा की जा सकती है | यह वस्तुतः ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा पालन का पर्व है। इस दिन धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी, धनपति कुबेर, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है।
भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी व सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।
इस अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है।
इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात क्षीरसागर से लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए और लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था। पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था |’
कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी। लक्ष्मीजी व समस्त देवी-देवताओं के साथ राजा बलि के यहाँ बंधक थीं। आज ही के दिन भगवान विष्णु ने उन सबको बंधनमुक्त किया था।
इसी दिन जब श्री रामचंद्र लंका से वापस आए तो उनका राज्यारोहण किया गया था। इस ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाए थे।
४.गोवर्धन पूजन ... दीपावली से अगले दिन किया जाता है | इस दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते हुए ब्रज व ब्रजवासियों को बचाया था। अतः इस दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं। इस प्रकार धन-धान्य व विकास के साथ-साथ प्रकृति के मूल तत्वों- पशु-प्राणी पालन, वन सभ्यता एवं कृषि व्यवस्था के महत्त्व का पर्व भी है |
५.यम द्वितीया, भाई दूज .... सामाजिक सौहार्द …अर्थात सामाजिक स्वास्थ्य, समष्टि-भाव, परमार्थ भाव अंतिम सोपान है जीवन के मूल लक्ष्य ..मोक्ष.. प्राप्ति का..अतः भाई-बहन का पर्व जिसमें बहन –भाई को मंगल टीका करके वे एक दूसरे से परस्पर स्नेह वृद्धि की कामना करते है | मृत्यु पर विजय प्राप्ति रूप में यम द्वितीया का पर्व कहा जाता है |
इसी दिन यम की बहन यमुना ( या यमी) ने यम से वरदान माँगा था की जो भाई-बहन इस दिन यमुना में साथ-साथ स्नान करेंगे वे यमलोक नहीं जायेंगे | यमराज का लेखाजोखा रखने वाले चित्रगुप्त की जयन्ती भी इस दिन मनाई जाती है | व्यापारी लोग अपने खातों के लेखा-जोखा का भी नवीनीकरण करते हैं |
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