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मेरा आधा भरा गिलास……डा श्याम गुप्त ….

drshyam jagaran blog
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मेरा आधा भरा गिलास……

हम लालग्रह पर पहुँचने की

सफलता का जश्न मना रहे थे,

नवरात्रों में ‘मोम’ के आशीर्वाद

के गुण गा रहे थे |

जोर शोर से देवी माँ के-

पंडाल सजाये जा रहे थे |

जन जन, टूटी-फूटी सडकों,

उफनाते सीवर, बहती हुई नालियां से युक्त

कूड़े के ढेर से बजबजाती हुई गलियों से होकर

कूड़े से पेट भरती गायों को देखेते हुए-

मंदिर जा रहे थे |

उधर बड़े-बड़े संस्थानों में देवियों का यौनशोषण और-

थाने में उनकी अस्मत का सौदा होरहा था |

कवि सम्मलेन में —

‘मुझे कान्हा बना देना,

उसे राधा बना देना’, गाया जा रहा था;

अंग्रेज़ी में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा था |

बच्चे, डैड का ज़माना छोडो,

नए ज़माने का ‘अन्फोर्मल’ अपनाओ गीत गा रहे थे |

करोड़ों खर्च करके लाये हुए

ताम्बे के टुकड़े पर इतरा रहे थे |

वे ग्लेमरस व सेक्सी दिखने की चाह में

अधोवस्त्र दर्शाते हुए-

लक्स, लिरिल से नहा रहीं थीं |

मैंने पूछा ,’ये क्या होरहा है !!!!!’

वे बोले-‘पुराणपंथी हो,

सकारात्मक सोचो, नकारात्मक नहीं,

कमजोरियों पर नहीं, मज़बूतियों पर फोकस रखो,

आधे भरे गिलास को देखो,

आधे खाली को नहीं ||

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