श्याम स्मृति …मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ?…डा श्याम गुप्त
drshyam jagaran blog
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श्याम स्मृति …मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ?
हमें अपनी विदेशी भाषा की अपेक्षा अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा के माध्यम से क्यों पढ़ना -पढ़ाना व सभी कार्य-कलाप करना चाहिए ? चाहे वह स्कूली शिक्षा हो या उच्च-शिक्षा या विज्ञान आदि विशिष्ट विषयों की प्रोद्योगिक शिक्षा ….क्या यह सिर्फ राष्ट्रीयता का या भावुकता व सवेदनशीलता का प्रश्न है ? नहीं…. वास्तव में अंग्रेज़ी या विदेशी माध्यम में शिक्षा विद्यार्थियों को विज्ञान के ही नहीं अपितु सभी प्रकार के ज्ञान को पूर्णरूपेण आत्मसात करने में मदद नहीं करती। बिना आत्मसात हुए कोई भी ज्ञान… .प्रगति. नवोन्नत-ज्ञान या अनुसंधान में मदद नहीं करता।
अंग्रेज़ी में शिक्षा हमारे युवाओं में अंग्रेज़ों (अमैरिकी –विदेशी ) की ओर देखने का आदी बना देती है। हर समस्या का हल हमें परमुखापेक्षी बना देता है | अन्य के द्वारा किया हुआ हल नक़ल कर लेना समस्या का आसान हल लगता है चाहे वह हमारे देश-काल के परिप्रेक्ष्य में समुचित हल हो या न हो| विदेशी माध्यम में शिक्षा हमारा आत्मविश्वास कम करती है और हमारी सहज कार्य-कुशलता व अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति को भी पंगु बनाती है। स्पष्ट है कि नकल करने वाला पिछड़ा ही रहेगा, दूसरों की दया पर निर्भर करेगा, वह स्वाधीन नहीं हो सकेगा| स्वभाषा से अन्यथा विदेशी भाषा में शिक्षा से अपने स्वयं के संस्कार , उच्च आदर्श , शास्त्रीय-सुविचार, स्वदेशी भावना , राष्ट्रीयता , आदर्श आदि उदात्त भाव सहज रूप से नहीं पनपते | यदि हम बच्चों को , युवाओं को ऊँचे आदर्श नहीं देंगे तब वे विदेशी नाविलों , विदेशी समाचारों , साहित्य ,टीवी –इंटरनेट आदि से नचैय्यों -गवैय्यों को अनजाने ही अपना आदर्श बना लेंगे, उनके कपड़ों या फ़ैशन की, उनके खानपान की रहन-सहन की झूठी- अप्सस्कृति की जीवन शैली की नकल करने लगेंगे।
अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा से हम उसी ओर जा रहे हैं | अतः हमें निश्चय ही अपनी श्रेष्ठ भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करना चाहिए ताकि सहज नवोन्नति एवं स्वाधीनता के भाव-विचार उत्पन्न हों | अंग्रेज़ी एक विदेशी भाषा की भाँती पढाई जा सकती है | इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होगी |
दुनिया के तमाम देश स्व-भाषा में शिक्षाके बल पर विज्ञान- ज्ञान में हमसे आगे बढ़ चुके हैं| हम कब संभलेंगे |
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