– आज अनाचरण व् मर्यादाहीनता के युगमें जब पुरुष ( एवं स्त्रियाँस्वयं भी ) स्वर्ण अर्थात धन, कमाई, भौतिकसुखों के पीछे दौड़ रहे हैं जो स्वयं इस अनाचरण का मूल है …..स्त्रियों कोही आगे आना होगा …उन्हेंसीता, दुर्गा, अनुसूया, मदालसा, जीजाबाई , लक्ष्मीबाईबनना होगा, स्वयं को एवं पुरुष को सदाचार का मार्ग दिखाने …यही युग की मांग है….)
सोनेकी लंका में, सीतामाँबंदीहै , रघुबरके नाम की भी, सुअना पावंदी है | —– लंका तो सोने की, सोना ही सोना है , सोना ही खाना-पीना, सोना बिछौना है | सोने के कपडे-गहने,सोने की बँगला-गाड़ी, सोने सा मन रखने पर, सुअना पावंदी है ||… सोने की लंका में …. —– सोने के मृग के पीछे, क्या गए राम जी, लक्ष्मण सी भक्ति पर भी, शंका का घेरा है | संस्कृति की सीता को, हर लिया रावण ने , लक्ष्मण की रेखा ऊपर, सोने की रेखा है || ——- अपना ही चीर हरण, द्रौपदि को भाया है , कृष्ण लाचार खड़े, सोने की माया है | वंशी के स्वरमें भी, सुर-लय त्रिभंगी है , रघुवर के नाम की भी रे नर ! पाबंदी है || …सोने की लंका में … ——- अब न विभीषण कोई, रावण का साथ छोड़े , अब तो भरत जी रहते, रघुपति से मुख मोडे | कान्हा उदास घूमे, साथी न संगी हैं , माखन से कौन रीझे, ग्वालेबहुधंधी हैं || —— सोने के महल-अटारी, सोने के कारोबारी, सोने के पिंजरे में मानवता बंदी है |
हीरामन हर्षित चहके, सोने के दाना-पानी –
पाने की आशा में, रसना आनंदी है || …सोने की लंका में… ——
कंस खूब फूले-फले, रावण हो ध्वंस् कैसे, रघुवर अकेले हैं, लंका में पहुंचें कैसे | नील और नल के छोड़े पत्थर न तरते अब , नाम की न महिमा रही सीताजी छूटें कैसे || ——-
अब तो माँ सीता !तू ही, आशा की ज्योति बाकी , जब जब हैं देव हारे, माँ ! तू ही तारती | खप्पर-त्रिशूल लेके, बन जा रणचंडी है , भक्त माँ पुकारें, राम की भी रजामंदी है || — सोने की लंका में ..||
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