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सोने की लंका में ….. डा श्याम गुप्त की कविता …..

drshyam jagaran blog
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सोने की लंका में ….. डा श्याम गुप्त

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आज अनाचरण व् मर्यादाहीनता के युगमें जब पुरुष ( एवं स्त्रियाँस्वयं भी ) स्वर्ण अर्थात धन, कमाई, भौतिकसुखों के पीछे दौड़ रहे हैं जो स्वयं इस अनाचरण का मूल है …..स्त्रियों कोही आगे आना होगा …उन्हेंसीता, दुर्गा, अनुसूया, मदालसा, जीजाबाई , लक्ष्मीबाईबनना होगा, स्वयं को एवं पुरुष को सदाचार का मार्ग दिखानेयही युग की मांग है….)

सोनेकी लंका में, सीतामाँबंदीहै ,
रघुबरके नाम की भी, सुअना पावंदी है |
—–
लंका तो सोने की, सोना ही सोना है ,
सोना ही खाना-पीना, सोना बिछौना है |
सोने के कपडे-गहने,सोने की बँगला-गाड़ी,
सोने सा मन रखने पर, सुअना पावंदी है ||…   सोने की लंका में ….
—–
सोने के मृग के पीछे, क्या गए राम जी,
लक्ष्मण सी भक्ति पर भी, शंका का घेरा है |
संस्कृति की सीता को,  हर लिया रावण ने ,
लक्ष्मण की रेखा ऊपर, सोने की रेखा है ||
——-
अपना  ही चीर हरण, द्रौपदि को भाया है ,
कृष्ण लाचार खड़े,  सोने की माया है |
वंशी के स्वरमें भी, सुर-लय त्रिभंगी है ,
रघुवर के नाम की भी रे नर ! पाबंदी है || …सोने की लंका में …
——-
अब न विभीषण कोई, रावण का साथ छोड़े ,
अब तो भरत जी रहते, रघुपति से मुख मोडे |
कान्हा  उदास घूमे, साथी  न संगी  हैं ,
माखन से कौन रीझे, ग्वालेबहुधंधी हैं ||
——
सोने के महल-अटारी, सोने के कारोबारी,
सोने  के पिंजरे में  मानवता बंदी है |

हीरामन हर्षित चहके, सोने के दाना-पानी –

पाने की आशा में, रसना आनंदी है || …सोने की लंका में…
——

कंस खूब फूले-फले, रावण हो ध्वंस्  कैसे,
रघुवर अकेले हैं,  लंका में पहुंचें कैसे |
नील और नल के छोड़े पत्थर न तरते अब ,
नाम की न महिमा रही सीताजी छूटें कैसे ||
——-

अब तो माँ सीता !तू ही, आशा की ज्योति बाकी ,
जब  जब  हैं  देव हारे,  माँ ! तू  ही तारती |
खप्पर-त्रिशूल लेके, बन जा  रणचंडी  है ,
भक्त माँ पुकारें, राम की भी रजामंदी है || — सोने की लंका में ..||

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