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श्याम स्मृति……धर्म और राजनीति … डा श्याम गुप्त

drshyam jagaran blog
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श्याम स्मृति…..धर्म और राजनीति …

आजकल  प्रायः यह कहा जाता है कि धर्म को राजनीति से पृथक ही रहना चाहिए.…धर्मगुरु अपने धर्म की बात करें उन्हें राजनीति पर या राजनीतिक क्रियाकलापों में भाग नहीं लेना चाहिए , उनका काम धर्म के प्रसार-प्रचार आदि का है राजनीति में भाग लेने का नहीं| साधू-संतों को राजनीति से क्या काम , वे सिर्फ अपने धर्म की बातें करें  आदि..आदि | ये एकांगी सोच है | ये सभी लोग प्राय्: या तो स्वयं राजनैतिज्ञ हैं  या तथाकथित सेक्यूलरवादी |  ये लोग स्वयं धर्म का अर्थ ही नहीं जानते |

आखिर धर्म क्या है | क्या धर्म एक मजहब या पंथ विशेष पर चलने को कहते हैं ? क्या सिर्फ धार्मिक कर्म काण्ड ही धर्म है?..नहीं….|  धर्म का अर्थ है किसी भी व्यक्ति, वस्तु , संस्था आदि का मूल नियम , मूल कर्त्तव्य | धर्म का कार्य है उस व्यक्ति, समाज-संस्था आदि को उचित दिशा प्रदान करना | अतः यदि धर्म , धार्मिक संस्थाएं , धार्मिक विचार व कृतित्व ….व्यक्ति, समाज, देश, राष्ट्रविश्व को उचित दिशा-ज्ञान नहीं दे सकते, उचित-अनुचित का व्यवहारिक ज्ञान नहीं दे सकतेतो उस धर्म का कोई मूल्य नहीं |

धर्म के बिना समाज का कोई भी कार्य सुचारू एवं नैतिकता से नहीं  चल सकता  | धार्मिकपरामर्शव धर्मनीति के बिना राजनीति …राज-अनीति ही बनकर रह जायगी, जो आज हो रहा है | क्या प्राचीन काल में राजा धर्म गुरुओं की सलाह पर कार्य नहीं किया करते थे | प्रायः  क्या विभिन्न सामाजिक मसलों पर आज भी धर्म-गुरुओं के  परामर्श  की परम्परा नहीं है | हाँ धर्म-गुरु , साधू-संत स्वयं राजनीतिक में भाग लें तो आपत्ति हो सकती है|

इतिहास गवाह है कि समय समय पर धर्म-गुरुओं ने ही समाज की रक्षा की है, हथियार भी उठाये हैं  | अब्दाली के आक्रमण व अत्याचारको मथुरा के गोसाइंयों ने ही रोका था | भारतीय स्वतन्त्रता के संग्राम में भुवाल सन्यासी एवं बंदेमातरम की कथा व भूमिका  किसे  ज्ञात नहीं है| राम के रावण रूपी अनीति पर -विजयव दक्षिण जनस्थान के  उत्थान में तत्कालीन व स्थानीय ऋषियों-मुनियों के योगदान का किसे पता नहीं है |

अतः यदि देश  व समाज में किसी सामाजिक कार्य-विचार व जन-जन आकांक्षा एवं राजनीति की उचित दिशा निर्देश हेतु धार्मिक सम्मेलनों , मंचों , संस्थाओं आदि  में विचार होता है तो कुछ भी अनुचित नहीं हैअपितु इसे समय के सापेक्ष घटनाक्रम के रूप में लेना चाहिए | वैसे ही हिन्दू धर्म के, भारतीयता, भारतीय संस्कृति व भारत के विरोधी अपनी अज्ञानता के कारण भारतीय साधू-संतों पर अकर्मण्यता का दोषारोपण करते रहे हैं | यह उचित रूप से उन्हें प्रत्युत्तर देने का समय है |

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