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कितने जीवन मिल जाते हैं……पितृ दिवस पर…. डा श्याम गुप्त की कविता….

drshyam jagaran blog
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कितने जीवन मिल जाते हैं……पितृ दिवस पर…. डा श्याम गुप्त की कविता….

( पितृ दिवस पर—-पिताकी सुहानी छत्र -छाया जीवन भर उम्र के, जीवन केप्रत्येक मोड़ पर, हमारामार्ग दर्शन करती है….प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखतीहै और उस अनुभवों के खजाने की छत्र -छाया मेंहम न जाने कितनेविविधज्ञान-भाव-कर्म युक्तजीवन जी लेते हैं…..प्रस्तुत है …एक रचना…गीत कीएक नवीन -रचना-विधाकृति में..जिसे मैं ….कारण कार्य व प्रभाव गीतकहता हूँ ….इसमें कथ्यविशेष का विभिन्न भावों से… कारण ,उस पर कार्य व उसका प्रभाव वर्णित कियाजाता है ….)

१.

पिता की छत्र-छाया वो ,

हमारेसिरपै होती है |

उंगली पकड़ हाथ में चलना ,

खेलना-खाना, सुनी कहानी |

बचपन के सपनों की गलियाँ ,

कितने जीवन मिल जाते हैं ||

२.

वोअनुशासन की जंजीरें ,

सुहानेखट्टे-मीठेदिन |

ऊबकरतानाशाहीसे,

रूठ जाना औहठकरना |

लाड प्यार श्रृद्धा के पल छिन,

कितने जीवन मिल जाते हैं ||

====३.

सिर पर वरद-हस्त होता है ,

नव- जीवन की राह सुझाने |

मग की कंटकीर्ण उलझन में,

अनुभव ज्ञान का संबल मिलता|

गौरव आदर भक्ति-भाव युत,

कितने जीवन मिल जाते हैं ||

4.

स्मृतियाँ बीते पल-छिन की,

मानस में बिम्वित होती हैं |

कथा उदाहरण कथ्यों -तथ्यों ,

और जीवन के आदर्शों की |

चलचित्रों की मणिमाला में ,

कितने जीवन मिल जाते हैं ||

५.

श्रृद्धा -भक्ति के ज्ञान-भाव जब ,

तन-मन में रच-बस जाते हैं |

जग के द्वंदों को सुलझाने,

कितने भाव स्फुरितरहते |

ज्ञान-कर्म और नीति-धर्म युत,

कितने  जीवन मिल जाते हैं ।।

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