शास्त्रों -पुराणों आदि में प्रायः पंचजन शब्द प्रयोग होता है; मेरे विचारानुसार इसका अर्थ है–पांच प्रकार के जन होते हैं—
१- जो पथप्रदर्शक एवं पथ बनाने वाले होते हैं -जो सोचने-विचारने वाले – नीति-नियम निर्धारक, ज्ञानवान, अनुभवजन्य ज्ञान के प्रसारक व उन पर स्वयं चलकर ( या न भी चलें-लोग उनका अनुकरण करते हैं ) सोदाहरण… लोगों को चलने के लिए प्रेरित करने वाले होते हैं | महान जन, विचारक, आदि. “महाजनायेनगतोसपन्था” ” केमहाजन, विचारक, क्रान्ति-दृष्टा, ऋषि-मुनि भाव, साधक लोग ।
२- जो महान जनों द्वारा निर्धारित पथ पर …विचारकर उत्तम पथ निर्धारण करके उस पर चलने वाले होते हैं, क्रियाशील व्यक्ति “महाजनायेनगतोसपन्था ” परचलनेवाले, क्रियाशील लोग, जीवन मार्ग के पथिक, उत्तम संसारी लोग । |
३- —पीछे पीछे चलने वाले –फोलोवर्स— जिन्हें पथ देखने व समझने, विचारने की आवश्यकता नहीं होती | जो क्रियाशील लोग करते हैं वही करने लगते हैं।
——–दो अन्य प्रकार के व्यक्ति और होते हैं —
४–विरोधी — जो विचारकों, चलने वालों, स्थिर-स्थापित पथों का विरोध करते हैं । इनमें….
(अ)-जो सिर्फ विरोधकेलिएविरोध करते हैं, विना सटीक तर्क या कुतर्क सहित – वे विज्ञ होते हुए भी समाज के लिए हानिकारक होते हैं, उन्हें यदि तर्क या साम, दाम, दंड, विभेद द्वारा राह पर लाया जाय तो उचित रहता है….
(ब) -जो वास्तविक बिन्दुओं पर सतर्कविरोधकरते हैं वे ज्ञानीजन–‘निंदक नियरे राखिये .. “‘ की भांति समाजोपयोगी होते हैं ।
५– उदासीन – न्यूट्रल — जो कोऊ नृप होय हमें का हानी …वाली मानसिकता वाले होते हैं; यही लोग समाजकेलिएसर्वाधिकघातक, ढुलमुल नीति वाले, किसी भी पक्ष की तरफ लुढ़कने वाले, अविचारशील होते हैं, जिनके लिए प्रायः कठोर नियम, क़ानून बनाने व उन पर चलाने की आवश्यकता होती है।
—- वोट न देने वाले भी प्रायः इसी पंचम कोटि में आते हैं ..क्या आप भी इसी कोटि में हैं क्या….सोचें ..अन्यथा अपना वोट अवश्य दें ….
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