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पिचकारी के तीर (कांटेस्ट )…डा श्याम गुप्त…

drshyam jagaran blog
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पिचकारी के तीर

गोरेगोरेअंगपै, चटखचढिगयेरंग,
रंगीलेआंचरउडैं, जैसेंनवलपतंग

चेहरेसारेपुतगये, चढेसयानेरंग,
समझकछूआवैनहीं, कोसजनीकोकंत

लालहरेपीलेरंगे, रंगेअंग प्रत्यंग ,
कज़्ज़लगिरिसीकामिनी, चढौकोऊरंग।

चन्चुमुखी पिचकारि ते, वे छोडें रंग धार,

वे घूंघट की ओट ते , करें नैन के वार ।

लकुटि लिये सखियां खडीं, बदला आज चुकायं,

सुधिबुधि भूलीं श्याम जब ले पिचकारी धायं ।

होली खेली लाल नै, उडे अबीर गुलाल,

सुर,मुनि,ब्रह्मा,विष्णु,शिव,तीनोंलोक निहाल।

भरिपिचकारीसखीपर, वेरंगबानचलायं,
लौटेंनैननबानभय, स्वयंसखारंगिजायं

भ्रकुटितानिबरजैसुमुखि, मनहीमनललचाय,
पिचकारीतेश्यामकी, तनमनसबरंगिजाय

भक्तिज्ञानप्रेमकी, मनमेंउठैतरंग,
कर्मभरीपिचकारिते, रसभीजैअंगअंग

एसीहोलीखेलिये, जरैत्रिविधिसंताप,
परमानन्दप्रतीतिहो, ह्रदयबसेंप्रभुआप

यह वर मुझको दीजिये,चतुर राधिका सोय,

होरी खेलत श्याम संग,दर्शन श्याम को होय ॥

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