drshyam jagaran blog
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गाँव की गोरी
लम्बी लम्बी छोरी,
इमली के तले
काली न गोरी |
पतिया की जात में
झूमते गुब्बारे,
मिट्टी की गाड़ी
गड गड गड पुकारे |
इमली के कतारे
और आँख-मिचौली ,
सरसों के खेत की
वो अठखेली |
नीलकंठ की दायीं
और श्यामा की बाईं ,
लेने को दौड़ना
खंदक हो या खाई |
गूंजती अमराइयां
नहर के किनारे ,
सावन के गीत ,और
वर्षा की फुहारें |
झमाझम वरसात में
जी भर नहाती,
खेतों की मेड़ों पर
झूम झूम गाती |
सावन में जब कभी
कोकिल कहीं बोली ,
बहुत याद आती हो
प्यारी हमजोली ||
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