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कविता -प्रविष्टि-गाँव की गोरी ..

drshyam jagaran blog
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गाँव की गोरी

लम्बी लम्बी छोरी,

इमली के तले

काली न गोरी |

पतिया  की जात में

झूमते गुब्बारे,

मिट्टी की गाड़ी

गड गड गड पुकारे |

इमली के कतारे

और आँख-मिचौली ,

सरसों के खेत की

वो अठखेली |

नीलकंठ की दायीं

और श्यामा की बाईं ,

लेने को दौड़ना

खंदक हो या खाई |

गूंजती अमराइयां

नहर के किनारे ,

सावन के गीत ,और

वर्षा की फुहारें |

झमाझम वरसात में

जी भर नहाती,

खेतों की मेड़ों पर

झूम झूम गाती |

सावन में जब कभी

कोकिल कहीं बोली ,

बहुत याद आती हो

प्यारी हमजोली ||

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