drshyam jagaran blog
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हतप्रभ सा खडा रहगया था मैं
नीम के नीचे
सूखे कुए की जगत पर
तेरे घर के सामने|
अवाक, हत मर्म, आश्चर्य चकित,
देखकर तुम्हारे उस रूप को|
सिर पर गगरी, हाथ में बाल्टी , काँधे पर डोर,
श्रम से रक्ताभ चेहरा,
माथे पर स्वेद-बिंदु :
गागर से छलके पानी से –
अर्धासिंचित पारदर्शी होती हुई कमीज़ ,
और कदमताल पर हिलते हुए
पीन पयोधर |
दक्षिण छोर की पतली वाली गली से निकलकर
अचानक इस रूप में
तुम्हारा मेरे सामने आजाना ,
ठिठक कर रुकना,
पलकें उठाकर गिराना
और तुरंत अन्दर चले जाना |
क्या सच नहीं था ,
मेरा अवाक रह जाना ||
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