Menu
blogid : 16095 postid : 705223

कविता , प्रविष्टि, नीम के नीचे…

drshyam jagaran blog
drshyam jagaran blog
  • 132 Posts
  • 230 Comments

हतप्रभ सा खडा रहगया था मैं

नीम के नीचे

सूखे कुए की जगत पर

तेरे घर के सामने|

अवाक, हत मर्म, आश्चर्य चकित,

देखकर तुम्हारे उस रूप को|

सिर पर गगरी, हाथ में बाल्टी , काँधे पर डोर,

श्रम से रक्ताभ चेहरा,

माथे पर स्वेद-बिंदु :

गागर से छलके पानी से –

अर्धासिंचित पारदर्शी होती हुई कमीज़ ,

और कदमताल पर हिलते हुए

पीन पयोधर |

दक्षिण छोर की पतली वाली गली से निकलकर

अचानक इस रूप में

तुम्हारा मेरे सामने आजाना ,

ठिठक कर रुकना,

पलकें उठाकर गिराना

और तुरंत अन्दर चले जाना |

क्या सच नहीं था ,

मेरा अवाक रह जाना ||

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh