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प्रणय गीत-प्रविष्टि-सखि कैसे ..? डा श्याम गुप्त ..

drshyam jagaran blog
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सखि कैसे ?

सखि री ! तेरी कटि छीन,

पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?

बोली सखी मुसकाय, हिये–

उर–भार तिहारो धरतीं हैं जैसे ||

भौहें बनाईं कमान भला , हैं–

तीर कहाँ पे, निशाना हो कैसे ?

नैनन के तूरीण में बाण ,

धरे उर पैनी कटार के जैसे ||

कौन यहाँ मृग–बाघ धरे ,

कहौ, बाणन वार शिकार हो कैसे ?

तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,

जब मारे कुलांच, शिकार हो जैसे ||

प्रीति तेरी मन मीत प्रिया –

उलझाए ये मन, उलझी लट जैसे |

लट सुलझाय तो तुम ही गए,

प्रिय, मन उलझाय गए कहो कैसे ?

ओठ तेरे बिम्बाफल भांति,

किये रचि, लाल अंगार के जैसे |

नैन तेरे प्रिय, प्रेमी चकोर ,

रखें मन जोरि अंगार से जैसे ||

अनहद –नाद को गीत बजे,,

संगीत, प्रिया अंगडाई लिए से |

कंचन–काया के ताल–मृदंग पे ,

थाप तिहारी कलाई दिए से ||

प्रीति भरे रस बैन तेरे , कहो –

कोकिल–कंठ भरे रस कैसे ?

प्रीति की वंशी तेरे उर की,पिय –

देती सुनाई मेरे उर में से ||

पंकज नाल सी बाहें प्रिया, उर–

बीच धरे हो, क्यों अँखियाँ मीचे |

मत्त मतंग की नाल सी बाहें ,

भरें उर बीच, रखें मन सींचे ||

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