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सखि री ! तेरी कटि छीन,
पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसकाय, हिये–
उर–भार तिहारो धरतीं हैं जैसे ||
भौहें बनाईं कमान भला , हैं–
तीर कहाँ पे, निशाना हो कैसे ?
नैनन के तूरीण में बाण ,
धरे उर पैनी कटार के जैसे ||
कौन यहाँ मृग–बाघ धरे ,
कहौ, बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,
जब मारे कुलांच, शिकार हो जैसे ||
प्रीति तेरी मन मीत प्रिया –
उलझाए ये मन, उलझी लट जैसे |
लट सुलझाय तो तुम ही गए,
प्रिय, मन उलझाय गए कहो कैसे ?
ओठ तेरे बिम्बाफल भांति,
किये रचि, लाल अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय, प्रेमी चकोर ,
रखें मन जोरि अंगार से जैसे ||
अनहद –नाद को गीत बजे,,
संगीत, प्रिया अंगडाई लिए से |
कंचन–काया के ताल–मृदंग पे ,
थाप तिहारी कलाई दिए से ||
प्रीति भरे रस बैन तेरे , कहो –
कोकिल–कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की वंशी तेरे उर की,पिय –
देती सुनाई मेरे उर में से ||
पंकज नाल सी बाहें प्रिया, उर–
बीच धरे हो, क्यों अँखियाँ मीचे |
मत्त मतंग की नाल सी बाहें ,
भरें उर बीच, रखें मन सींचे ||
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