Menu
blogid : 16095 postid : 685622

विवाह पूर्व यौन संबंध में स्त्री विवेक के साथ पुरुष विवेक भी आवश्यक है –डा श्याम गुप्त — Jagran Junction Forum

drshyam jagaran blog
drshyam jagaran blog
  • 132 Posts
  • 230 Comments

विवाह पूर्व यौन संबंध में स्त्री विवेक के साथ पुरुष विवेक भी आवश्यक है ———Jagran Junction Forum

न्यायालय का फैसला बिलकुल सही है यह स्त्री हित के अनुकूल ही है, आज के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जहां स्त्री-पुरुष की संगति के मौके अधिक हैं शादीपूर्व यौन सम्बन्ध आवश्यक तो नहीं, जो कभी नहीं रहे, परन्तु यदि स्त्री स्वयं यौन सम्बन्ध बनाती है तो उसका अपना दायित्व है अतः स्त्री को अपनी स्वयं की एक सीमा रेखा बनानी होगी | ……. यदि पढी-लिखी, वालिग़ लड़की अपना हर फैसला लेने में स्वतंत्र लड़की-महिला अपनी इच्छा से सम्बन्ध बनाती है तो वह उसके परिणामों से भली भांति परिचित है ..उसे या तो स्वयं पर कंट्रोल करना चाहिए अथवा परिणाम को स्पोर्टिंग-स्वस्थ-भाव से लेना चाहिए……विवाह से मुकरजाना आदि सदा से ही होता आया है जो उभयपक्षीय स्वभाव है| पौराणिक गंगा-शांतनु…उर्वशी–पुरुरवा ..आदि स्त्रियों के पुरुष को त्याग कर स्वयं ही सम्बन्ध आगे न निभाने के उदाहारण हैं, और आज भी स्त्रियाँ भी ऐसा करती हैं|

पौराणिक संबंधों में अर्जुन-चित्रांगदा, अर्जुन-उलूपी, भीम-हिडिम्बा, कुंती-सूर्य, मेनका-विश्वामित्र, दुष्यंत-शकुन्तला जैसे स्त्रियों की त्रुटियों के तमाम उदहारण हैं परन्तु किसी भी स्त्री ने अपनी त्रुटि को पुरुष पर नहीं लादने की प्रयत्न किया, न स्वयं को कमजोर साबित होने दिया ..अपितु स्वयं को समर्थ व पुरुष की सहायता के बिना भी जीकर दिखाया एवं समय पड़ने पर अपनी संतान को पिता की सहायता हेतु प्रस्तुत करके पुरुष से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध किया |

राधा ने कब कृष्ण से शिकायत की अपितु अपने प्रेम को बंधन न बनने देने हेतु स्वयं उन्हें कर्तव्य पथ पर चलने को प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप कृष्ण …श्रीकृष्ण बने एवं विश्व को गीता जैसा कर्मयोग का सिद्धांत प्राप्त हुआ|

इसके साथ ही एक अन्य मूलभूत बिंदु पुरुष-दायित्व का भी है| यद्यपि आज के सशक्त-शिक्षित महिला को भावनात्मक आधार पर पुरुष द्वारा भरमाये जाने का आधार व आसार कम ही हैं फिर भी शादी से पूर्व यौन संबंधों में स्त्री को पुरुष द्वारा भावनात्मक रूप से भरमाये जाने की शंका सदैव रहती है | अतः पुरुष को भीअपना सामजिक दायित्व समझना चाहिये एवं ऐसे प्रकरण से बचना चाहिए | यदि स्त्री भावुकता की कमजोरी में या त्रुटिवश या नासमझी में त्रुटि करती है तो उन्हें अपने उस पुरुष- दायित्व को समझना चाहिए जिसे वे अपना पुरुषत्व कहते हैं एवं स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं |…… आज भी ऐसे दायित्व बोध-युत पुरुष होते हैं|

यम बाद में नियमों एवं अनुशासन के देवता हुए ..जिन्हें आज भी यमानुशासन एवं नियमानुशासन कहा जाता है |

अन्य उदाहरणों में…. ताड़का-विश्वामित्र प्रकरण…शूर्पणखा–राम प्रकरण….अर्जुन-उत्तरा प्रकरण आदि पुरुष की दृड़ता के उदाहरण हैं|

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh