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बहुत ऊपर उठ गए हैं हम……डा श्याम गुप्त …

drshyam jagaran blog
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बहुत ऊपर उठ गए हैं हम……

विश्व मानव समाज की जीवन-पद्धति सदैव ही मूलतः दो सामाजिक विचार-धाराओं से नियमित होती आई है –एक धर्म-प्रधान, दूसरी धर्म-विरोधी, जिन्हें दैवीय व आसुरी विचार धारा भी कहा जाता है |

धार्मिक या ईश्वरवादी दार्शनिक विकासवाद एवं मूलतः अनीश्वरवादी, भौतिकवादी, वैज्ञानिक-

विकासवाद कीधाराएं हैं| येविचारधारायें प्रायः अतिवाद में परिणत होकर रूढ़िवादी धार्मिक विचारधारा एवं

अति-भौतिकवादीविचारधाराएँ बन जाती हैं और देव-दानव, सुर-असुर, पुरा-नवीन के युद्ध समाज में प्रत्येक स्तर

पर चलते रहते हैं जो मानवता के सर्वांगीण विकास में बाधा उपस्थित करते हैं|

भारत में वैदिक-विचारधारा की अवधारणा का तीसरा तत्व विकसित हुआ जो सिर्फ भारत में ही

फला-फूला एवं भारतीय सभ्यता की विश्ववारा संस्कृति का वैशिष्ट्य बना और पुरा-काल से आज तक

दैवीय विचारधारा का

ही उन्नत व समन्वित रूप है जो दार्शनिक व वैज्ञानिक विकासवाद के समन्वय की धारा है, धर्म-अध्यात्म व

भौतिकता के समन्वित व्यवहार की धारा जो व्यक्ति के कर्म, पुरुषार्थ के साथ आठ सामाजिकता के परमार्थ एवं

धर्म व ईश्वर-प्रणनिधान से अभिसिंचित होती है | जिसे वैदिक साहित्य में….

“ विद्यान्चाविद्या यस्तदावेदोभय सह,

अविद्ययाम मृत्युं तीर्त्वा,विद्ययां अमृतंनुष्ते ||” ……..(.ईशोपनिषद )

से उद्घोषित किया गया | समस्त राजनैतिक, नैतिक, सामाजिक, व्यवहारिक कृतित्व इन्हीं विचारधाराओं से प्रचालित होते हैं |

भारत जब विदेशी-योरोपीय दासता से स्वतंत्र हुआ तो उसके सम्मुख विश्व-पटल सहित तीन प्रमुख धाराएं थीं, तीन राजनैतिक राहें थीं चलने हेतु…

स्वदेशी, पुरातन भारतीय वैदिक धारा— जो भौतिकता, यथार्थ, नव-वैज्ञानिकता एवं पुरातन शास्त्रीयता की ईश्वरीय-भाव की समन्वित प्रणाली, धर्म, ज्ञान, दर्शन के आठ साथ भौतिक प्रगति की प्रदर्शक , उदारचेता, सर्वजन-हिताय, यथायोग्य कर्तव्य व अधिकार की समर्थक…शनैः शनैः प्रगति के ठोस पथ पर चलने वाली वैदिक सभ्यता की राह …जिसे नव-नव-प्रगतिवादी पुरातनपंथी राह भी कह सकते थे

ईश्वर की अपेक्षा व्यक्तिनिष्ठ, सिर्फ कर्मनिष्ठ सभ्यता की राह जो योरोप-अमेरिका की नक़ल की संस्कृति थी |

कम्युनिस्ट विचारों की राह जो रूस की क्रान्ति-प्रतिक्रांति की उपज थी |

गुलामी, मैकाले की शिक्षा-नीति व पुरा-भारतीय साहित्य, शास्त्र व पुस्तकालयों के विनाश से से पीड़ित, आहत-मन भारतीय स्व-संस्कृति से ही अनजान थे| अंग्रेज़ी व योरोप में दीक्षित पढ़े-लिखे भारतीय जो स्व-संस्कृति से अनभिग्य थे एवं विदेशों की चकाचौंध से गुमराह थे उनका कांग्रेस में वर्चस्व था| स्वयं गांधीजी भी योरोपीय सभ्यता-संस्कृति से चमत्कृत थे, योरोप में पढ़े-लिखे एवं विदेश में वकालत स्थापित करने वाले गांधीजी व्यक्तिगत अपमान के प्रतिक्रया-स्वरुप भारत लौटे, भारतीय होकर | सरदार बल्लभभाई पटेल व उनके साथी भारतीय परम्परावादी थे | गांधीजी एवं कांग्रेस ने योरोपीय विचारधारा वाले पंडित नेहरू को चुना | शीघ्र ही हमने नक़ल की संस्कृति की तत्वर भौतिक-वैज्ञानिक उन्नति की योरोपीय प्रणाली की राह के विकल्प को को चुन लिया और देश तेजी से वैज्ञानिक विकासवाद की राह पर चल पडा |

आज देश भौतिक प्रगति के चरम पर है | बहुराष्ट्रीय कम्पनियां, कर्मचारियों को मोटी-मोटी पगार ऊंचे-ऊंचे बहुमंजिली भवन, केम्पस, अमेरिका-योरोप से कम नहीं हैं | बड़े-बड़े मॉल ( बहुमंजिले -मल्टी-पर्पज बाज़ार—पुराने नानबाइयों की भांति) में बिना मोल-भाव खरीदारी, ओनलाइन बिना देखे खरीदारी फिर चार-चार बार के ट्रांजेक्शन और भारतीयों को गालियाँ देकर जाहिल बताकर हम ऊंचाइयां छू रहे हैं |

बच्चों, युवाओं व महिलाओं के रहन सहन, वस्त्र, नौकरी, व्यापार सभी में उन्नति हुई है | वे नई-नई ऊंचाइयां छू रहीं हैं | सभी अमेरिकन, अंग्रेज़ी पुस्तकें, गीत, कविता, सोंग्स पढने व गाने-समझने लगे हैं | हमारे बाज़ार, सेंसेक्स, स्टॉक-एक्सचेंज, शेयर अमेरिकी बाज़ार से निर्देशित होते हैं| उपभोग की वस्तुएं …टीवी , कम्प्युटर,मोबाइल सभी कुछ जैसे ही अमेरिका में ईजाद होते हैं …सबसे बड़ा उपभोक्ता व बाज़ार भारत ही होता है | हम व हमारा देश, समाज, राष्ट्र भौतिक प्रगति व वैज्ञानिक ज्ञान में भी प्रत्येक प्रकार की ऊंचाइयां छूता जा रहा है, भले ही वह नक़ल हो परन्तु है प्रगति |

हम व्यवहार में भी इतने ऊंचे उठ गए है कि —–

१. १.हमारे बच्चे-युवा अंग्रेज़ी, अमेरिकन, योरोपियन पुस्तकें, गीत, कविता , सोंग्स समझाने-गाने लगे हैं | हिंदी या मातृभाषा नहीं जानते- पहचानते युवा विदेशी वस्तुएं ही खरीदते हैं व उपयोग करते हैं…देशी वस्तुओं को स्तरहीन बताते हैं | पहले उनके आदर्श गांधी, सुभाष, राम, कृष्ण, रामायण, गीता , सीता, सावित्री, तानसेन हुआ करते थे; अब करीना, शाहरुख, फ़िल्में व फिल्मों के अधनंगे लोग या समलैंगिक लोग होते हैं |

२.२. पहले…. हमारे यहाँ गरीब भिखारी एक पैसा मांगता था, पढ़े-लिखे लोग उसे हिकारत की नज़र से देखते थे और अपने देश को गाली देते थे |

—अब चन्दा के ज़रिये जबरदस्ती भीख माँगी जाती है,माफिया बन्दूक के जोर पर भीख ( उगाही, हफ्ता ) बसूलाते हैं, नाच-गाकर खुशी-खुशी पेट भरने वाले हिज़ड़े जबरदस्ती भीख रूपी बसूली करते हुए घर, गली, गाँव, मोहल्ला, सड़क, रेल में देखे जा सकते हैं| बच्चों को अपांग बनाकर भी मंगवाने वाले गिरोह हैं यह भी सभी जानते हैं|

३.३.पहले… छोटे-मोटे लोग …चोर-उचक्के-उठाईगीरे राह-ठग , चोरियां करते थे…डकैत साहूकारों से लूटकर जनता में बाँटते थे ….

आज—–बड़े-बड़े लोग.. अफसरों, नेताओं, मंत्रयों, पुलिसवालों, जजों, व्यापारियों, दाक्तार्रों, टीचरों के बेटे-बेटियाँ अपहरण, लूट, दकैते, गोलीकांडों में पकडे जा रहे हैं|

वक्शीश मांग लिया करते थे, कभी कभी रिश्वत भी …परन्तु उन्हें बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता था |

—- आज ….मंत्री, नेता, चीफ-जस्टिस ,अफसर, चिकित्सक, व्यापारी, सेना के अफसर, कम्पनियां रिश्वत लेते हुए व भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं|

५. ५.पहले … गली के टुच्चे-मुच्चे शोहदे , दुष्ट प्रकृति के निम्न श्रेणी के लोगों द्वारा छेड़-छाड़, अश्लील बातें, फब्तियां, व कभी कभी वलात्कार जैसे कृत्यों को सूना जाता था …

—-आज…. सभी बड़े बड़े महान लोग, मंत्री, नेता, चीफ जस्टिस, ,डाक्टर,अफसर, तेचार, प्रोफ़ेसर, प्रिंसीपल, सेवा-नियोक्ता, सेवा-योजक, मीडिया-पत्रकार , साथी, मित्र, सहकर्मी , कंपनियों में …सभी छेड़-छाड़, व बलात्कार आदि में लिप्त पाए जा रहे हैं |

सचमुच ही आधुनिक प्रगतिशील हम कितने ऊपर उठ गये हैं आज |

“ हम कौन थे क्या होगये

और क्या होंगे अभी | “

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